Sunday, November 26, 2023

देवदार और तितली

मैं नहीं जनता कि मेरा भविष्य क्या है, लेकिन दिल की गहराई में जलता एक दिया मुझे दिखाता है यह दृश्य जहाँ "मेरे देवदारों के जंगलों में तुम तितली बनके उड़ती हो हर रोज़". तुम्हारा स्वागत है, तुम आओ मेरे वृक्षों के सीने में अपने आशियाने बनाओ फिर हम दोनों नीचे बहती नदी को साक्षी मानकर सर्दियों में बर्फ गिरने का इंतजार करेंगे. पत्तों से मैं रोज़ ओस बनके बूँद-बूँद तुम्हारी हथेली पर गिरूंगा और जब तुम उस हथेली को सूरज के सामने दिखाओगी तब वो समुन्द्र के तल में तपती किसी सीपी में बंद मोती जैसी चमकेगी, यह रोशनी हमारे फूलों में खुशबू का निर्माण करेगी जहाँ से प्रेम के बीज बोये जायेंगे. 


समय के चक्कर के बाहर कूदकर ब्रह्माण्ड में बेतरतीब तरीके से तैरते उल्का पिंड बन जायेंगे जो आँखों के सामने गुजरती ज़िन्दगी को देखेंगे और आनंदविभोर होंगे. जब तूफ़ान आएगा ना तब यह उल्का पिंड इन्द्रधनुष से टकराकर समुन्द्र में गिरेंगे जहाँ तितलियाँ इन्हें चूमकर इनके रंगों को गंगा किनारे उड़ते हुए वापस देवदारों के जंगल में फैला देंगी और यह बतायेंगी कि "देवदार और तितली का प्रेम ब्रह्माण्ड से लेकर समुन्द्र तक फैला है".



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